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हाल ही में कैट प्रतियोगी परीक्षा आयोजित की गई । पहली बार यह परीक्षा ऑनलाइन ली गई लेकिन हश्र क्या हुआ इससे सभी वाकिफ हैं । एस वाकिये से जो बात उभर के सामने आती है वो ये कि शिक्षा के उच्च स्तर पर भी हमारे संसाधन उतने ही लचर हैं जितने कि प्राथमिक या माध्यमिक और उच्च माध्यमिक स्तर के हैं । भारतीय प्रतियोगी परीक्षाएं चाहे वे प्रशासनिक सेवाएँ हो या कैट ,मैट या अन्य कोई प्रतियोगी परीक्षा एक मानक स्तर प्राप्त कर चुकी हैं । लेकिन अध्ययन और अध्यापन कि ओर दृष्टिपात करें तो हम पाएंगे की तमाम कोशिशों के बाद भी हमारा देश अध्यापन के तकनिकी क्षेत्र में काफी पिछड़ा हुआ है । यह अलग बात है की अध्यापन की नई तकनीकों की खोज जारी है किन्तु क्या इन तकनीकों को लागू करने में हम सक्षम हैं ?
नित नई परीक्षाएं जन्म ले रही हैं साथ ही नई पद्धतियाँ निर्धारित की जा रही हैं . शिक्षा भी एक कोर्पोरेट उद्योग की भाति दिन दूनी रात चौगुनी उन्नत्ति कर रहा है .ज्यादा दूर न जा कर केवल प्राथमिक स्तर पर गौर करें तो आप पायेंगे की गली मोहल्ले में सब्जी-भाजी की दूकाने उतनी नहीं होंगी जितने प्राइमरी स्कूल . अछे स्कूलों में दाखिला दिलाना चाहते हैं तो कई दिनों तक कतारों में लग कर भी सफलता मिल जाए तो अपने आप को धन्य मानिए .
अध्यापन पद्धति की चर्चा करें तो हम पायेंगे कि प्राथमिक स्तर से लेकर कॉलेज तक एक पद्धति बहुत लोकप्रिय है जिसे लेक्चर मैथड कहा जाता है और मूल्यांकन का भी यही हाल है . कहने का तात्पर्य यह है कि महज़ अच्छी बिल्डिंग , सुसज्जित कक्षा-कक्ष,प्रशिक्षित अद्यापक ,कुछ सुंदर सहायक शिक्षण सामग्री होने से स्कूल अच्छा है इसकी गारंटी हो जाती है...?
अब भी उन्ही पारंपरिक तौर -तरीकों से अध्यापन और मूल्यांकन किया जा रहा है , जिन से किसी ज़माने में हमारे माता -पिता का हुआ करता था . तात्पर्य यह है कि उन्नत संसाधन होना जितना आवश्यक है उतना ही ज़रूरी उन संसाधनों का उपयोग. प्रशिक्षित शिक्षक होने के साथ-साथ नवीन तकनीकों से अद्यापन भी ज़रूरी है .इसके साथ यह भी सुनिश्चित होना चाहिए कि मूल्यांकन भी नवीन पद्धतियों से हो ....पूर्व समय में पारंपरिक शिक्षा पद्धति सामानयज्ञों को तैयार करने में अव्वल थी ....लेकिन आज ज़माना विशेषज्ञता का है .
.... हो सकता है कोई बच्चा जितना अच्छा लिखने के कौशल में अंक ला सकता हो ...उतना पढने या रचनात्मक कौशल में न ला सके .....इसके विपरीत कोई विद्यार्थी ऐसा भी हो सकता है जो क्रियात्मक कौशल में उम्दा हो मगर लिखने में कमज़ोर ...अतः आवश्यता है प्रत्येक कौशल के अनुसार परीक्षा पद्धति विकसित करने की साथ ही नवीन संसाधनों के त्वरित विकास की . ताकि प्रारंभिक स्तर से ही विद्यार्थी विशेष की रूचि का पता चल सके ....१२ वीं कक्षा के बाद वह अँधेरे में तीर चलाते सिपाही जैसा न बने .... और आने वाले समय में कोई माउस किसी कैट पर भरी न पड़े
गुरुवार, 3 दिसंबर 2009
क्यों कैट पर भारी पड़े माउस ...?
हाल ही में कैट प्रतियोगी परीक्षा आयोजित की गई । पहली बार यह परीक्षा ऑनलाइन ली गई लेकिन हश्र क्या हुआ इससे सभी वाकिफ हैं । एस वाकिये से जो बात उभर के सामने आती है वो ये कि शिक्षा के उच्च स्तर पर भी हमारे संसाधन उतने ही लचर हैं जितने कि प्राथमिक या माध्यमिक और उच्च माध्यमिक स्तर के हैं । भारतीय प्रतियोगी परीक्षाएं चाहे वे प्रशासनिक सेवाएँ हो या कैट ,मैट या अन्य कोई प्रतियोगी परीक्षा एक मानक स्तर प्राप्त कर चुकी हैं । लेकिन अध्ययन और अध्यापन कि ओर दृष्टिपात करें तो हम पाएंगे की तमाम कोशिशों के बाद भी हमारा देश अध्यापन के तकनिकी क्षेत्र में काफी पिछड़ा हुआ है । यह अलग बात है की अध्यापन की नई तकनीकों की खोज जारी है किन्तु क्या इन तकनीकों को लागू करने में हम सक्षम हैं ?
नित नई परीक्षाएं जन्म ले रही हैं साथ ही नई पद्धतियाँ निर्धारित की जा रही हैं . शिक्षा भी एक कोर्पोरेट उद्योग की भाति दिन दूनी रात चौगुनी उन्नत्ति कर रहा है .ज्यादा दूर न जा कर केवल प्राथमिक स्तर पर गौर करें तो आप पायेंगे की गली मोहल्ले में सब्जी-भाजी की दूकाने उतनी नहीं होंगी जितने प्राइमरी स्कूल . अछे स्कूलों में दाखिला दिलाना चाहते हैं तो कई दिनों तक कतारों में लग कर भी सफलता मिल जाए तो अपने आप को धन्य मानिए .
अध्यापन पद्धति की चर्चा करें तो हम पायेंगे कि प्राथमिक स्तर से लेकर कॉलेज तक एक पद्धति बहुत लोकप्रिय है जिसे लेक्चर मैथड कहा जाता है और मूल्यांकन का भी यही हाल है . कहने का तात्पर्य यह है कि महज़ अच्छी बिल्डिंग , सुसज्जित कक्षा-कक्ष,प्रशिक्षित अद्यापक ,कुछ सुंदर सहायक शिक्षण सामग्री होने से स्कूल अच्छा है इसकी गारंटी हो जाती है...?
अब भी उन्ही पारंपरिक तौर -तरीकों से अध्यापन और मूल्यांकन किया जा रहा है , जिन से किसी ज़माने में हमारे माता -पिता का हुआ करता था . तात्पर्य यह है कि उन्नत संसाधन होना जितना आवश्यक है उतना ही ज़रूरी उन संसाधनों का उपयोग. प्रशिक्षित शिक्षक होने के साथ-साथ नवीन तकनीकों से अद्यापन भी ज़रूरी है .इसके साथ यह भी सुनिश्चित होना चाहिए कि मूल्यांकन भी नवीन पद्धतियों से हो ....पूर्व समय में पारंपरिक शिक्षा पद्धति सामानयज्ञों को तैयार करने में अव्वल थी ....लेकिन आज ज़माना विशेषज्ञता का है .
.... हो सकता है कोई बच्चा जितना अच्छा लिखने के कौशल में अंक ला सकता हो ...उतना पढने या रचनात्मक कौशल में न ला सके .....इसके विपरीत कोई विद्यार्थी ऐसा भी हो सकता है जो क्रियात्मक कौशल में उम्दा हो मगर लिखने में कमज़ोर ...अतः आवश्यता है प्रत्येक कौशल के अनुसार परीक्षा पद्धति विकसित करने की साथ ही नवीन संसाधनों के त्वरित विकास की . ताकि प्रारंभिक स्तर से ही विद्यार्थी विशेष की रूचि का पता चल सके ....१२ वीं कक्षा के बाद वह अँधेरे में तीर चलाते सिपाही जैसा न बने .... और आने वाले समय में कोई माउस किसी कैट पर भरी न पड़े
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कुछ अपने बारे में...
- binser(Dr. Priyanka Sharma)
- देवभूमि गढ़वाल से मेरा पैतृक और भावात्मक रिश्ता है | उम्र के २० -२५ साल जिस जगह बिता देते हैं ....हम वहीं के होकर रह जाते हैं...मेरी परवरिश राजस्थान में हुई | थार के रेगिस्तान की रंग -बिरंगी संस्कृति है ...जो पहाडी परिवेश से काफी अलग है | 'बिनसर' गढ़वाली बोली का एक शब्द है ..जिसका अर्थ नव प्रभात है | निश्चित ही यहाँ ये प्रभात मेरे विचारों से जुडी हुई है ... बिनसर के पाठकों से यह अनुरोध है कि पोस्ट को पढने के बाद अपनी टिपण्णी अवश्य दे ...निश्चित ही यह लेखन के क्षेत्र में मुझ जैसे लेखक को नई और सकारात्मक उर्जा देगा ....
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2 टिप्पणियाँ:
बताऊँ अपने यहाँ के प्राथमिक स्कूलों का हाल ! कम्प्यूटर लग गये एक साल पहले । वायरिंग हुई चार महीने बाद । अभी तक कोई टीचर उपलब्ध नहीं हुआ । यह हाल कमोबेश सभी प्राथमिक स्कूलों का है । सरकारी पैसे के व्यतिक्रमित उपयोग से हाजिरी तो लग जाती है हर सरकारी योजना की, पर वस्तुतः प्राप्ति शून्य ही रहती है ।
thanx kishor ji..aur himanshu ji ko unki comments k liye yahi kahna chahungi ki es tarah ki vyatha ko adyapak se achha kon samjh sakta h
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