पिछले कुछ दिनों की घटनाओं ने मन को बेहद नकारात्मक तरीके से विचलित किया। कहा जाता है ना कि किसी देश को बर्बाद करना हो तो उसकी युवा शक्ति को पथभ्रष्ट कर दो। दुख के साथ कहना पड़ रहा है….ऐसी ही आहट हमारे देश मे भी सुनाई दे रही है।
आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता उसी तरह मानवता भी हर एक की बपौती नहीं है। जो इंसान, इंसान कहलाने के लायक नहीं उसके लिए अधिकार के क्या मायने हैं। वामपंथी या लैफ्टिस्ट होना बुरा नहीं है…देशद्रोही सोच होना खतरनाक है। जे एन यू में कार्यक्रम आयोजित करनेवाले छात्र का गौण उद्देश्य जो भी रहा हो…सीधा लक्ष्य सस्ता प्रचार पाना था।
कहावत है, जा के पैर न फटी बिवाई वो क्या जाने पीर पराई… भारत मे रह कर देशद्रोहियों के समर्थन मे नारे लगाने वालों को सिर्फ एक दिन के लिए दुर्गम सीमा पर तैनात जवानों की ज़िंदगी, जीना तो दूर, महज़ दिखाई जाए। शहीद जवानों के बच्चौं से मिलवाया जाए…जो उनसे पूछें कि हमारे पिता कि शहादत की क्या कीमत है जिस पर शायद तुम बिक चुके हो।
अधिकार की बात करनेवाले इन जयचंद की संतानों से पूछा जाए कि किस हक़ कि बात तुम कर रहे हो। घर और ज़मीन कश्मीरी पंडितों के थे…जिनको जबरन हथिया कर आज उस पर मालिकाना हक़ जताया जा रहा है….भाई, ग़ज़ब की सीनाजोरी है।
आख़िर मे, जो प्रबुद्धजन देश मे असहिष्णुता का राग आलापते हैं उनके लिए कुछ पंक्तियाँ। सहिष्णुता का इससे बड़ा क्या सबूत होगा कि भारत की सम्प्रभुता मे छेद करने वालों को खुली हवा मे सांस लेने की आज़ादी है… वर्ना इन जैसों के लिए उत्तर कोरिया ही सही जगह है…. ना मुकदमा ना ही सफाई…बस इल्ज़ाम और सीधे फैसला
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