शुक्रवार, 21 अगस्त 2009

जन्माष्टमी और हवेली मन्दिर


पिछले दिनों जन्माष्टमी बड़े धूम - धाम से मनाई गई । यहाँ उत्तर भारत की जन्माष्टमी मुख्य रूप से राजस्थान ,गुजरात और उत्तर प्रदेश में यह दिन अलग तरह से मनाया जाता है। कई दिन पहले से कृष्ण जनम झांकियां और लीलाएं शरू हो जाती हैं। मंदिरों को हज रोज़ एक नए तरीके से सजाया जाता है ,कभी मोतियों से तो कभी फूलों से । इन दिनों मदिरों का श्रंगार दिन मैं कई बार बदला जाता है।

हर बार नए रूप में कृष्ण और उनसे सम्बंधित घटनाओं का चित्रण और सजावट की जाती है ।


यहाँ के कृष्ण मंदिरों की कई विशेषताएँ हैं ,जैसे इन मंदिरों का स्थापत्य ...कृष्ण -श्रंगार ....झांकियां इत्यादि ...मंदिरों को अगर ध्यान से देखें तो ये किसी हवेली जैसे लगते हैं । इसका कारन ये है कि पूर्वकाल में आक्रांताओ से बचने के लिए कुछ कृष्ण भगत और संत मथुरा -वृन्दावन से उनकी मूर्तियों को राजस्थान और गुजरात ले आए । उन्होंने इन हवेलियों में शरण ली ....वे यहाँ कृष्ण भजन गाते और उनसे सम्बंधित लीलाओं -घटनाओ का वाचन करते । उन्होंने इन हवेलियों को कृष्ण मन्दिर में परिवर्तित कर दिया । इन्हे आज भी हवेली ही कहते हैं।
इन हवेली मंदिरों में एक ख़ास बात ये होती है कि यहाँ भगवान् कृष्ण की मूर्ती के पीछे उनसे सम्बंधित चित्र लगाए जाते हैं । जो कपड़े पर उकेरे जाते हैं ...इन्हे पिछवई कहा जाता है । कई बार ये पिछवई कृष्ण के हर श्रंगार के साथ बदल दी जाती है।
इन मंदिरों में आठ पहर के अनुसार आठ बार श्रृगार किया जाता है। जैसे उत्थान ,मंगला ,पूजन ,शयन...आदि -आदि । इसलिए इन आठों पहर के अलग अलग भजन और पद होते हैं।
जब इन हवेलियों की स्थापना की गई थी उस समय एक नई संगीत विधा का भी जनम हुआ था ...इसे हवेली संगीत के नाम से जाना जाता है। हवेली संगीत से ही जुड़े हैं अष्ट पद कवि और उनके द्वारा रचित पद । इन अष्ट पद कवियों में वल्लभाचार्य भी एक थी जिन्होंने मधुराष्ट्रकम की रचना की थी।



अष्ट पद संगीत में केवल कृष्ण पद ही गए जाते हैं । इन पदों मैं थ ,ठ ,ला ,भा , त्र इन शब्दों का प्रयोग नही किया जाता है झूला को झूरा ... बोली को बोरी आदि । इसके पीछे कारण ये है कि भगवान् कृष्ण के कानो को तेज़ आघात न हो ...उन्हें परेशानी न हो .... । आज भी ये हवेली मंदिर वैसे ही हैं ...यकीन न हो तो अगली जन्माष्टमी पर यहाँ आकर ख़ुद ही देख लें ....


मंगलवार, 11 अगस्त 2009

ये जो देस है मेरा

१५ अगस्त आने वाला है .....लोगों के लिए छुट्टी का दिन है ,कुछ घूमे जाने वाले हैं तो कुछ पूरा दिन घर में सो कर बिता देंगे .....कुछ लोगों ने प्लान बनाया है कि नई फ़िल्म इसी दिन देखेंगे....मेरे एक परिचित से मैंने एस बारे मैं बात की ....जवाब क्या मिला ...जानना चाहेंगे ?....

--- ...भाई फिर छुट्टी कहाँ मिलेगी ....
--- ....लेकिन अगर आप ये सब काम करोगे तो १५ अगस्त कौन मनायेगा ?????
---...अरे यार ये सब अब एक दिखावा है ......ये ज़िम्मेदारी तो प्रशासन वालों की है वो मना तो रहे हैं..
--- ... और फिर स्कूल वाले हैं ना ....वो मना लेंगे ....और वैसे भी सेक्योरिटी के हिसाब से भी इस दिन घर में ही रहो तो अच्छा है....
----.....हम तो आपको भी कह रहे हैं घर में मस्त रहिये ....

ओफ्फ्फ ....आख़िर हो क्या गया है लोगों को ?क्यों हो गए हैं सब ऐसे ?.....

....एक बहुत ही सीधी सी बात है ...देश आजाद हुआ है उसकी खुश मनानी है....बस । .... ही पैसे खर्च करने है ... दान देना है फिर ऐसी उदासीनता क्यों ?....
कभी कभी तो लगता है की वास्तव में वो दौर ही ऐसा रहा होगा की लोग देश के लिए नींद- चैन ,घर- बार छोड़ कर मर- मिटे इस धरती के लिए ....अगर उन्होंने उस समय आराम करने का सोचा होता ....?क्या वो अपने घरवालों के साथ समय नही बिताना चाहते होंगे ....?जिनकी वजह से हम आज़ाद हैं, उनको याद करने के लिए कुछ घंटे भी नही हैं हमारे पास .....

यही हाल स्कूल के भी हैं .....कुछ स्कूल इस दिन छुट्टी रखते हैं ताकि उस दिन लड्डू बांटने की आफत से बचना पड़े ....कोई सांस्कृतिक कार्यक्रम ना करवाना पड़े ..... आफत टले
जहाँ १५ अगस्त मानते हैं वहाँ उस दिन बच्चे स्कूल कम आते हैं ....अगले दिन जब बच्चों से पूछा जाता है की बेटा कल आप क्यों नही आए ....तो फिर वही रटा-पिटा जवाब -मैम हमारी मम्मी ने कहा कल स्कूल नही भेजेंगी .... ।
यानि जैसे हम ख़ुद हैं वैसे ही हम अपने बछो को भी बनाते जा रहे हैं .......
आख़िर ये उदासीनता क्यों?...
क्या देश के लिया हमारा इतना भी कर्तव्य नही ...अगर नही ...तो फिर क्यों हम आए दिन रोते हैं अपनी समस्याओं को लेकर ....सरकारी तंत्र की बुराइयों को लेकर ..... भ्रष्टाचार , लालफीताशाही ,आरक्षण, पक्षपात और महंगाई को लेकर क्यों कोसते हैं सरकार को ....यदि देश के प्रति देशवासियों का कोई कर्तव्य नही, तो देश भी किसी का नही ....समाज की दिशा से किसी को मतलब नही .... वोट डालने ...या १५ अगस्त और २६ जनवरी जैसे त्योहारों से किसी का वास्ता नही ....अपनी ओर से कोई योगदान देना तो दूर .....दूसरों को भी भ्रमित करने में माहिर हैं लोग ....... ।
आज भी मुझे याद है मेरी एक अध्यापिका १५ अगस्त और २६ जनवरी के दिन नई साड़ी पहनती थी ....जिस रंग की साड़ी उसी रंग की चूडियाँ ... इस दिन सज-संवर के आना उन्हें खुशी देता था ....उन्ही से मैंने ये सीखा कि ये दिन आत्मिक खुशी का दिन है और इसी मानना हमारा कर्तव्य है .....
ये मेरे निजी विचार हैं क्या आप भी इनसे साम्यता रखते हैं .....क्या कहा .....हाँ .....



.......यानी इस बार आप १५ अगस्त मानाने जा रहे हैं ....हैं ना ....








रविवार, 9 अगस्त 2009

भावनाए नही बदलती ..

हमारे माता -पिता दोनों में से कौन हमे ज्यादा प्यार करता है ...ये पता लगाना नामुमकिन है .....प्यार की सीमा बाँधने क लिए अगर माँ को धरती मान लिया जाय तो पिता भी आकाश से कम नही है ....हम धरती को छू सकते हैं उस पर खेल सकते हैं लेकिन आसमान को छू पाना ...उसकी गहराई का पता लगना बहुत मुश्किल है .....


जब हम बच्चे होते हैं तो हमारे लिए 'पापा '...ये शब्द किसी सुपर मैन से कम नही होता .....जो काम हम नही कर सकते वो 'पापा ' कर सकते हैं ....एक फरमाइश करने भर की देर है ....और 'पापा ' उस चीज़ को ले आते हैं ....हमे चोट लग जाए तो गोद में उठाकर दुलारने वाले'पापा'....और जब हमे लगे के हम दुश्मनों से घिर चुके हैं तो उन्हें डराने धमकाने के लिए aएक ही शब्द जुबां पे आता है ............'पापा'


जी ........!कुछ इसी तरह से चल रहा था उस दिन का प्रोग्राम .....जिस दिन फादर्स डे था .... सब कुछ वैसा ही था ...... स्टूडियो ,माइक,हेडफ़ोन, कंसोल और कंप्यूटर ...सब कुछ....पर पता नही क्यों ..... उस दिन मैंने चाहा कि यहाँ आज मेरे साथ पापा होने ही चाहिए ........ ऐसा लग रहा था कि वो अगर स्टूडियो में साथ होते तो ......अचानक गाना बंद हुआ और मुझे एहसास हुआ कि अगला लिंक बोलने का समय गया है। खैर वो प्रोग्राम तो वहीं ख़तम हो गया पर इस के बारे सोचती रही ..... की कैसे समय बीत जाता है पता ही नही चलता जब हम बच्चे होते हैं तो 'पापा'बहुत बड़े लगते हैं .....फिर जब हम और बड़े हो जाते हैं तो 'पापा ' भी बड़े हो जाते है .....लेकिन एक समय ऐसा भी आता है जब हम तो बड़े होते जाते हैं लेकिन पापा ..... बच्चे बन जाते हैं वो हमे हमेशा हौसला देते हैं प्रेरित करते हैं .... पर आगे बढ़ते हुए ....वो तरक्की के साथ ये भी चाहते हैं की हम हमेशा उनके साथ भी रहें ....
इसी को बयान करता हुआ एक इंग्लिश गाना भी है -






Just wanna say ......i love u Papa