इतिहास में झांकें तो एक चीज़ जो उभर कर सामने आती है कि सत्ता का उपभोग उन्ही ने किया है जिनके पास शक्ति थी ...... । ऐसा इसलिए भी हुआ क्योंकि उन्होंने सत्ता को बचाए रखने के लिए भरसक प्रयास किए । उन्होंने आम जनता को ज्ञान से दूर रखा ताकि वे अधिकारों जैसी किसी चीज़ की मांग ही ना करें । यही सिलसिला आगे तक चलता गया और अब भी जारी है ।
कहने को तो हम २१ वीं सदी में जी रहे हैं .... सूचना प्रोद्योगिकी का दौर है ... दुनिया 'विश्व ग्राम ' में तब्दील हो चुकी है .... भारत नए आयामों को छू रहा है ... कितना सच.... और कितना झूठ..... ये हम सब जानते हैं । इस विषय का अध्ययन करते हुए मुझे कई बार बड़ा अचम्भा हुआ जब मैंने ये देखा कि इस युग में भी कई लोग ऐसे हैं जो डिग्री - धारी तो है , अख़बार भी पढ़ते हैं, टी. वी भी रोजाना देखते हैं फिर भी उन्हें अधिकारों के बारे में कोई जानकारी नही है । जगह -जगह अभियान , सेमीनार ,लेक्चर्स होते हैं जिससे लोगों में जागरूकता लाई जा सके । लेकिन इसमे भी जनरुचि का अभाव है ..... हास्यास्पद बात ये है कि ऐसी जगह जाने की बजाय लोग सत्संग,फ़िल्म या खरीददारी करने जाना ज्यादा पसंद करते हैं । अक्सर जब मैं अपने मिलनेवाले लोगों को परेशान देखती हूँ .... और पूछती हूँ कि क्यों परेशान हैं ?.... तो मालूम पड़ता है कि किसी सरकारी काम में अड़चन परेशानी की वजह है । इसके जवाब में मैं उन्हें आर .टी.आई.लगाने की राय देती हूँ ,तो वे कहते हैं .....
क्या .... आर .टी.आई.? ये क्या है?...... हमें कोर्ट - कचहरी नही जाना ? या .... अरे हम तो आम लोग हैं .....हम क्या जाने ये कानून -वानून क्या है?.... कहने का मतलब ये है कि स्थिति आज भी जस कि तस है ।ऐसा लगता जैसे सबको इस तरह जीने की आदत पड़ गई है ।
दूसरी तरफ़ सरकारी महकमों में आर.टी.आई.एक हौवा है .... निचले तबके के कर्मचारी इस शब्द का उपयोग तो करते हैं ....पर ये क्या है .....इस बारे में उन्हें नही पता । आला -अधिकारी सूचना के अधिकार के तहत लगे प्रार्थना -पत्रों से परेशान हैं । कुछ दिन पहले इस क़ानून के दुरोपयोग कि बात चल रही थी... इस पर किसी ने कहा कि इस कानून का दुरोपयोग नही हो सकता ..... । लेकिन जनाब ऐसा नही है .... आपको ये जानकर हैरानी होगी कि आकाशवाणी जयपुर में लगभग २७० प्रार्थना -पत्र कार्यालय में कार्यरत लोगों ने ये जानने के लिए लगाये कि अमुख गाना किस दिन बजा .....पिछले २ ,६ या ८ महीनों में कितनी बार बजा ...... या पिछले साल अमुख फ़िल्म के गाने कितनी बार बजे...... । निश्चित ही ये जानकारी किसी तरह की ज्ञान वृद्धि नही करने वाली । हाँ , ये बात और है कि इस तरह की सूचनाएँ एकत्रित करते -करते आकाशवाणी के प्रशासक और अधिकारी संगठन के मुख्य उद्देश्य यानि प्रसारण को छोड़ लॉग बुक ही उलटते -पलटते रह जाए ।
सूचना का अधिकार एक नया कानून है ..... कुछ लोंग इस से अनभिज्ञ हैं .... कुछ अनभिज्ञ बने रहना चाहते हैं ....और जो इस से भिज्ञ हैं वे इसका जमकर उपयोग कर रहे हैं .......या ....... इससे कुछ अधिक कहें तो .............दुरुपयोग....................!
कहने को तो हम २१ वीं सदी में जी रहे हैं .... सूचना प्रोद्योगिकी का दौर है ... दुनिया 'विश्व ग्राम ' में तब्दील हो चुकी है .... भारत नए आयामों को छू रहा है ... कितना सच.... और कितना झूठ..... ये हम सब जानते हैं । इस विषय का अध्ययन करते हुए मुझे कई बार बड़ा अचम्भा हुआ जब मैंने ये देखा कि इस युग में भी कई लोग ऐसे हैं जो डिग्री - धारी तो है , अख़बार भी पढ़ते हैं, टी. वी भी रोजाना देखते हैं फिर भी उन्हें अधिकारों के बारे में कोई जानकारी नही है । जगह -जगह अभियान , सेमीनार ,लेक्चर्स होते हैं जिससे लोगों में जागरूकता लाई जा सके । लेकिन इसमे भी जनरुचि का अभाव है ..... हास्यास्पद बात ये है कि ऐसी जगह जाने की बजाय लोग सत्संग,फ़िल्म या खरीददारी करने जाना ज्यादा पसंद करते हैं । अक्सर जब मैं अपने मिलनेवाले लोगों को परेशान देखती हूँ .... और पूछती हूँ कि क्यों परेशान हैं ?.... तो मालूम पड़ता है कि किसी सरकारी काम में अड़चन परेशानी की वजह है । इसके जवाब में मैं उन्हें आर .टी.आई.लगाने की राय देती हूँ ,तो वे कहते हैं .....
क्या .... आर .टी.आई.? ये क्या है?...... हमें कोर्ट - कचहरी नही जाना ? या .... अरे हम तो आम लोग हैं .....हम क्या जाने ये कानून -वानून क्या है?.... कहने का मतलब ये है कि स्थिति आज भी जस कि तस है ।ऐसा लगता जैसे सबको इस तरह जीने की आदत पड़ गई है ।
दूसरी तरफ़ सरकारी महकमों में आर.टी.आई.एक हौवा है .... निचले तबके के कर्मचारी इस शब्द का उपयोग तो करते हैं ....पर ये क्या है .....इस बारे में उन्हें नही पता । आला -अधिकारी सूचना के अधिकार के तहत लगे प्रार्थना -पत्रों से परेशान हैं । कुछ दिन पहले इस क़ानून के दुरोपयोग कि बात चल रही थी... इस पर किसी ने कहा कि इस कानून का दुरोपयोग नही हो सकता ..... । लेकिन जनाब ऐसा नही है .... आपको ये जानकर हैरानी होगी कि आकाशवाणी जयपुर में लगभग २७० प्रार्थना -पत्र कार्यालय में कार्यरत लोगों ने ये जानने के लिए लगाये कि अमुख गाना किस दिन बजा .....पिछले २ ,६ या ८ महीनों में कितनी बार बजा ...... या पिछले साल अमुख फ़िल्म के गाने कितनी बार बजे...... । निश्चित ही ये जानकारी किसी तरह की ज्ञान वृद्धि नही करने वाली । हाँ , ये बात और है कि इस तरह की सूचनाएँ एकत्रित करते -करते आकाशवाणी के प्रशासक और अधिकारी संगठन के मुख्य उद्देश्य यानि प्रसारण को छोड़ लॉग बुक ही उलटते -पलटते रह जाए ।
सूचना का अधिकार एक नया कानून है ..... कुछ लोंग इस से अनभिज्ञ हैं .... कुछ अनभिज्ञ बने रहना चाहते हैं ....और जो इस से भिज्ञ हैं वे इसका जमकर उपयोग कर रहे हैं .......या ....... इससे कुछ अधिक कहें तो .............दुरुपयोग....................!
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