लोक्तात्रत्मक शासन व्यवस्था जिसे प्लेटो ने विधिसम्मत राज्य का निकृष्टतम किंतु विधिविहीन राज्य का
सर्वोत्कृष्ट रूप कहा तो अरस्तू ने इसी भीड़तंत्र को प्रजातंत्र कहा । आधुनिक काल में अमेरिकी राष्ट्रपति लिंकन ने लोकतंत्र की एक नई व्याख्या की - जनता की,जनता के द्वारा ,जनता के लिए । कुछ विद्वानों ने यह भी कहा कि
जब बहुसंख्यको द्वारा एक व्यवस्थित संहिता के आधार पर शासन किया जाता हैतो वह संवैधानिक तंत्र कहलाता है ।
लोकतंत्र का सबसे पेला और प्रमुख गुण यह है कि यहाँ शासन जनता द्वारा चुने हुए प्रतिनिधियों के माध्यम से होता है। विश्व के अलग -अलग राष्ट्रों ने इस टोप (लोकतंत्र ) को अपने -अपने सर के हिसाब से पहना और व्यवस्थित किया है। लेकिन यह भी कहना पड़ेगा कि जिन देशों के नागरिकों ने शासन कि वास्तविक लगाम अपने हाथों में रखी है वहीं लोकतंत्र का रथ गति से दौड़ रहा है। बहुत से राष्ट्रों ने समय -समय पर अपने संविधानों में छोटे-बड़े संशोधनों द्वारा लोगों कि आस्थाओं को सुदृढ़ करने के का प्रयास किया है अतःएव अपने शासन में पारदर्शिता लाने के लिए जनता को जानने का हक भी दिया । तभी उन राष्ट्रों में सफल शासन तंत्र पुष्पित -पल्लवित हुआ और अनवरत प्रयासों से अब भी विकसित होता जा रहा है।
विश्व में सर्वप्रथम सूचना का अधिकार स्वीडन के नागरिकों को प्राप्त हुआ (१७६६)। इसके बाद अन्य
देशों ने अपने नागरिकों को यह अधिकार दिया । भारत .... विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र... सन १९४७ में आजाद हुआ किंतु हमारे देश में तकरीबन आज़ादी की आधी सदी के बाद यह अधिकार मिला । सूचना की स्वतंत्रता अधिनियम वर्ष २००२ में पारित हुआ .... अधिक प्रभावी न होने के कारण कई संशोधनों के बाद एक नए रूप में वर्ष २००५ में सूचना के अधिकार अधिनियम के नाम से लागू हुआ । विचारणीय विषय यह है कि भारत जैसे देश में सूचनाओं के सार्वजनीकरण पर रोक क्यों रही ? इतने वर्षों तक सरकारी दस्तावेजों पर गोपनीय और अति - गोपनीय जैसे शब्द क्यों लिखे गए ? क्यों आम -आदमी लोकसेवकों से भयभीत रही ?
क्या वास्तव में हमारे संविधान निर्माता ऐसा भारत चाहते थे ....जहाँ जनता नेताओं और प्रशासकों के अत्याचारों और भ्रष्ट आचरण से त्रस्त रहे या उनके सपनों का भारत कुछ अलग था । यदि ऐसा नही था तो अंग्रेजों के ज़माने में बनाये गए अधिकाँश अधिनियमों को ज्यों का त्यों भारतीय संविधान में क्यों शामिल किया गया ? सरकारी गोपनीयता अधिनियम १९२३ को किस कारण जारी रखा गया ... और समय के साथ इसे और कठोर क्यों बनाया गया ?लोकतंत्र में जानने के अधिकार पर वांछनीय न होते हुए भी रोक क्यों रही....
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बुधवार, 1 जुलाई 2009
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कुछ अपने बारे में...
- binser(Dr. Priyanka Sharma)
- देवभूमि गढ़वाल से मेरा पैतृक और भावात्मक रिश्ता है | उम्र के २० -२५ साल जिस जगह बिता देते हैं ....हम वहीं के होकर रह जाते हैं...मेरी परवरिश राजस्थान में हुई | थार के रेगिस्तान की रंग -बिरंगी संस्कृति है ...जो पहाडी परिवेश से काफी अलग है | 'बिनसर' गढ़वाली बोली का एक शब्द है ..जिसका अर्थ नव प्रभात है | निश्चित ही यहाँ ये प्रभात मेरे विचारों से जुडी हुई है ... बिनसर के पाठकों से यह अनुरोध है कि पोस्ट को पढने के बाद अपनी टिपण्णी अवश्य दे ...निश्चित ही यह लेखन के क्षेत्र में मुझ जैसे लेखक को नई और सकारात्मक उर्जा देगा ....
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