जम्मू -कश्मीर के हालात अच्छे नहीं हैं। पहले उत्तराखंड त्रासदी फिर सीमा पर जवानों का शहीद होना जिसने सारे देश को दहला दिया और फिर किश्तवाड़ में हुए दंगे। राजनेताओं ने शहीदों की शहादत पर खूब राजनीति की … कुछ ने तो सारी हद तोड़ते हुए शर्मनाक बयान भी दिए, अब मानसून सत्र में चल रहा कीचड़ खेल । राजनीति के रंगमंच के ये विदूषक इतने तमाशे बेहिचक कैसे कर लेते है। कभी -कभी ऐसा लगता है कि हम हिंदुस्तानी शायद इसी लायक हैं। यही नहीं कुछ और समय ऐसे ही चलने दीजिये वो दिन दूर नहीं जब हम दोबारा गुलाम होंगे।
एक और बात है जो इन दिनों चर्चा में रही ईमानदार नौकरशाहों को काम नहीं करने देना। पहले दुर्गा शक्ति का निलंबन फिर उस पर हुई राजनीति के सब साक्षी हैं। ... उन्ही के बैच के एक और अधिकारी, युनुस खान , जो इस समय हिमाचल में रेत -माफिया से निपटने की कोशिश कर रहे हैं , उन्हें जान से मरने की कोशिश की गई। राजनेताओं और माफियाओं से टकराने की जिस किसी अधिकारी ने जुर्रत की है उनके तबादलों की फेहरिस्त बहुत लम्बी होती है। अरुणा राय ,अरविन्द केजरीवाल ,किरण बेदी ,अशोक खेमका और न जाने कितने अफसर जो अपने उसूलों से नहीं डिगे ,या तो इस्तीफा दे देते हैं या हाशिये पर नौकरी के दिन कट रहे हैं।
जनता भी कोई कोर कसर नहीं छोड़ रही है. एक तरफ देश की सीमा पर जवान शहीद हो रहे हैं ऐसे में सारे देश की जनता को दूसरे मुद्दों को नहीं खड़ा करना चाहिए। लेकिन जनता दिमाग से खाली हो चुकी है तभी तो कभी तेलंगाना तो कभी संयुक्त आन्ध्र , गोरखालैंड,बोडोलैंड ,विदर्भ ,बुंदेलखंड और हरित प्रदेश की मांग को लेकर जुलूस और दंगे हो रहे हैं। कितना अजीब है के कुछ लोग कितनी आसानी से अपने फायदे के लिए सारी जनता को दंगों और आंदोलनों में झोंक देते हैं। हिन्दू -मुस्लिम में आम लोगों को बाँट देते हैं। अगड़ी -पिछड़ी जात या अल्पसंख्यक जैसे झुनझुने बजा कर निजी स्वार्थ हल लेते हैं।
समझ नहीं आता सेना का मनोबल गिरा कर ,सच्चाई और ईमानदारी से देश सेवा करने वाले अफसरों दरकिनार कर और लोगों को बाँट कर कौनसा भारत निर्माण हो रहा है. । मन दुखी है उदास है। ….चाहता है की आज़ादी के इस जश्न पर ईश्वर देश के लोगों को सद्बुद्धि दे ताकि हम हिन्दू मुस्लिम सिख या किसी और धर्म और जाति के बनने से पहले हिंदुस्तानी बन सकें। ओछी राजनीति से ऊपर उठ सके.… सही और गलत के फर्क को समझ सकें। समाज के ठेकेदारों के बहकावे से दूर एक विकसित भारत का निर्माण कर सकें। अब सहने की नहीं सही को चुनने की समझ देना चुनाव की तारीख को 'नेशनल हॉलिडे 'न माने ताकि जो लोग देश के लिए अपना सबकुछ न्योछावर कर गए उनकी आत्मा को शर्मिंदगी की बजाय..... थोड़ी शांति मिले।